...

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लाज
मैंने देखा सरेआम लाज ढोते
मैंने देखा है मा बाप को कबाड़ ढोते
मैंने देखा अपनी फ्ट्टी साड़ी सिलाई करते
मैंने देखा है इंसान को इंसानियत का गला घोते

मैंने देखा कंधे पे बोझ के सिलवटें
मैंने देखा है बूढ़ी मा के चश्मे का काच टूटे
मैंने देखा भूखे पेट सोते
मैंने देखा रातों मै अक्सर भूखे पेट पानी पीते

मैंने कभी नहीं देखा चेहरे की मुस्कान होते
मैंने कभी नहीं देखा मा को आशु बिन सोते
मैंने देखा मजबुर बाप को रोते
मैंने देखा अपने नजरो मै मैंने उस बाप को गिरते
मैंने देखा उस बाप टूटे

मैंने देखा है मजबुर लाचार मा बाप को होते
मैंने सोचा है अब लिख ना पाऊं इस पाप के ऊपर
मैंने वादा लिया खुद से ना सोने दी भूखे
मैंने देखा है सरेआम लाज ढोते
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