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कृष्ण के शब्द रुककर समझने जैसे
कृष्ण कह रहें हैं अर्जुन से- कि संसार मुझमें है, मैं संसार में नहीं हूँ, जो भी बुरा -भला है वो सब मुझमें है, लेकिन मैं बुरे में नहीं हूँ, कृष्ण तो विराट अस्तित्त्व हैं जो भी होगा वो सब उनके भीतर ही तो होगा और होगा भी कहाँ? और जगह भी कहाँ है उनके अलावा होने की? कृष्ण का वचन यहाँ बड़ी सूझ-बुझ से समझने जैसा है। कृष्ण किसी भी अनैतिक और बुरी चीज के साथ खड़े नहीं है। मनुष्य जब अव्यवस्थित है तब वह कृष्ण को नहीं पा सकेगा, जैसे ही मनुष्य व्यवस्थित हुआ वह कृष्ण ही हो गया, कृष्ण उसमें ही हो गये,
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