...

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कैसै और क्यू मै इतना बदल गई
जब तक मैं बेखौफ आजाद जीती रही
कभी कोई परेशानी नहीं आई
जब मैं झूठ की गिरफ्त में आने लगी
जब बंदिशों में बंधने लगी
तब से परेशानियां ने मुझे घेरा
मुझे जो बातें नहीं पसंद है वह मैं खामोशी से सुनने लगी
लोगों के लिए महज वह बातें छोटी रही होगी
पर वह छोटी-छोटी बातें मेरे हृदय में आघात करती रही
मेरे खुशहाल जीवन को बर्बाद करती रही
मेरी खुशमिजाजी वजूद को धीरे-धीरे बदलती गई
और इतनी बदल गई कि जब पुराने यादों से धूल की परत हटने लगी
तो खुद के स्वरूप को आईने में देख मैं चौकन्ना रह गई



© Poetry Girl