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सयानी होती लड़कियाँ
सयानी होती लड़कियाँ

उनके भीतर से
एक मौसम जा रहा है दबे पाँव
यह उनके सपनों से
परियों के जाने का मौसम है

हिरण शावकों मेमनों या नन्हें जिराफों की तरह
घर लौटते ही दौड़ लगातीं
खोजतीं जेब में कैडबरी के चाॅकलेट
या झोले में इमली अमरूद
देखो ठिठकी खड़ी हैं
पहले की तरह जमीन आसमान एक करतीं
अब नहीं भरतीं कुलाचें

विदाई की इस बेला में
उनकी आँखों में कांपती है
छुईमुई सी एक मीठी सी सिहरन
कि अबोध नहीं रहीं वे सयानी हो चुकीं

सयानी होती लड़कियाँ
अपनी तीसरी आँख से
या छट्ठी इन्द्री से
किसी के भीतर कुछ पक रहा है
या दाल में कुछ काला है
भांप जाती हैं
सटकर माँ के कानों में कुछ फुसफुसा जाती हैं
उन आवारा लड़कों के बारे में नहीं
उस अधेड़ मास्टर के बारे में

वे देखती हैं अपनी खरगोश जैसी आँखों से
आसपास की चीजों को टोहती थाहती
अपने नरम पाँवों से सीखती हैं दौड़ना
रास्ते की खुरदरी जमीन पर

उनके भीतर है एक धरती की उष्णता
एक नदी का आवेग
एक झरने का नाद
और एक ऋतु की गंध
© daya shankar Sharan