...

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क्या वो घड़ी थी..
झुलस रही थी जिंदगी दर्दों गम की धूप में,
गुलमोहर की छांव मिली है, तुम्हारे रूप में.

क्या दिन था वो, उफ, क्या वो घड़ी थी,
तू मेरे इश्क में, मैं तेरे इश्क में, पड़ी थी.

वो बातों वादों कसमों मुलाकात के पल,
दिन भी था छोटा राते भी कहा बड़ी थी.

ठीक से याद नही, जब हम तुम मिले थे,
धूप थी या बारिश की रिमझिम झड़ी थी.

कुछ तुम थे सहमे, कुछ मैं थी, शरमाई,
तेरे नैनो से जब मेरी ये निगाहें लड़ी थी.

दिन ब दिन, और प्यार बढ़ता ही गया,
न उतरी, उस वक्त जो खुमारी चढ़ी थी.

© एहसास ए मानसी