...

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इन आंखों में ठहर गया हूं मैं ❤️
ये आंखें , मौन रहकर भी करती सब कुछ बयां।
फिर भी, वो थकान शाम की छुपा लेते हो कहां ??
कुछ तो लबों ने कह दिया...! बस
सुनने बातें, कुछ अनकही सी,
इन आंखों में ठहर गया हूं मैं।।

ये आंखें, गहरी समुंद्र सी, काजल जो शाम हुआ,
उफ्फफ... ये पलकों से जो मुस्कुराएं
की सांझ भी, लगती फीकी यहां।
भटका हुआ में, अब दे - दो पनाह,
इन आंखों के लिए ठहर गया हूं में।।

अब और कुछ ना कह पाऊंगा इन आंखों के सिवा
सक्षम नहीं लिखने में, कुछ इन आंखों के सिवा।
बस तुम हो सामने, और ये आंखे कभी न हो खफा
कुछ इस तरह,
इन आंखों में ठहर गया हूं मैं।।

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© Pushp