...

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टीस
टीस वो दरिया हैं जो लफ्जों में बरसता हैं ।
अश्कों में बह जाए,चुपके से सिसकियों में वो दर्द नहीं।।

वो मलिन तहमद और रिवायतों का फीतूर,
सफ़र ए हयात में मुस्तमल कई हैं,पर इनमें तहम्मुल वो जर्फ नहीं।।

तक्कवूर ना हो गर सीने में,खलक जलालतों में शुमार हैं,
मय्यसर कोई काबिल होगा सब्र तो कर,
सिगरे में कोई तो होगा जिसमे कोई दर्प नहीं।।

निशां तो ख़ैर मेहताब में भी हैं"शायर"
जुदा तजकियो के मुमकिन नहीं,जिसमे कोई हर्फ नहीं।।




© yyours fellow