...

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अपनी पहचान बनाऊंगी
*अपनी पहचान बनाऊंगी*

बड़ी ही इज्जत से, हमने उसको बुलाया था
न जाने वो किसे देखने, हमारे घर आया था

शायद उसे न थी, हमसफर की कोई जरूरत
उसकी नजरों में थी, गुनहगारों जैसी हरकत

तमीज और तहजीब का, उसे न था लिहाज
पहन रखा था सर पर, बेशर्मी का बड़ा ताज

मुझे समझा उसने, बिस्तर का एक खिलौना
इंसान की शक्ल में, शैतान था बड़ा घिनौना

मेरी नुमाइश हो रही थी, मेरी मर्जी के बगैर
मेरे अपनों में ही मुझको, दिखने लगे थे गैर

सवाल और जवाब का, ऐसा दौर चल पड़ा
रगों में दौड़ता मेरा खून, जोर से उबल पड़ा

किसलिए इतनी जिल्लत, मैं सहन कर लेती
इस शादी के लिए में, इकरार क्यों कर लेती

जिस्म के भूखे दरिंदे को, लगाई मैंने फटकार
डर मिटाकर किया मैंने, इस शादी से इनकार

मेरे जिस्म से खेलने की, न दूंगी मैं इजाज़त
अच्छे से जानती हूं, करना अपनी हिफाजत

जिन्दगी भर कोई भी, हमसफर न बनाऊंगी
बेटी हूं इस देश की, देश के काम ही आऊंगी

मेहनत करके, कुछ बनकर जरूर दिखाऊंगी
अपने भारत देश की, पहचान मैं कहलाऊंगी

*ॐ शांति*
© Bk mukesh modi