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कैसे होते है लोग...
गुनाह खुद के छिपाते है लोग
मन को यूँ बहलाते है लोग
अंधेरों में खुद को छिपा कर
दूसरों के ऐब गिनाते है लोग
नहीं देखते है कभी आईना
ना खुद को पढ़ पाते है लोग
शिकन देख चेहरे पर किसी की
क्यों सुकूँ पा जाते है लोग
दीवारे गिर चुकी है खुद के घर की
और दूसरों के झरोकों से झांकते है लोग
रिश्तों की आड़ में अक्सर देखा है
रिश्तों की ही बलि चढ़ाते जाते है लोग
© * नैna *
मन को यूँ बहलाते है लोग
अंधेरों में खुद को छिपा कर
दूसरों के ऐब गिनाते है लोग
नहीं देखते है कभी आईना
ना खुद को पढ़ पाते है लोग
शिकन देख चेहरे पर किसी की
क्यों सुकूँ पा जाते है लोग
दीवारे गिर चुकी है खुद के घर की
और दूसरों के झरोकों से झांकते है लोग
रिश्तों की आड़ में अक्सर देखा है
रिश्तों की ही बलि चढ़ाते जाते है लोग
© * नैna *
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