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ग़ज़ल
अर्ज़ है एक ग़ज़ल ~
तूफ़ाँ से घबराना क्या।
पीछे क़दम हटाना क्या।
क्यों डरता है इतना तू,
जीना क्या मर जाना क्या।
ग़लत, ग़लत है, कोई करे,
कहने में शर्माना क्या।
रोते-रोते आया था,
रोकर ही मर जाना क्या।
साथ नहीं कुछ जाएगा,
क्या खोना है, पाना क्या।
दर्द बाँट ले जिसका हो,
क्या अपना,बेगाना क्या।
मर मिटना ही क़िस्मत है,
आशिक़ क्या,परवाना क्या।
सीधी-सीधी बात करो,
नाहक़ ही उलझाना क्या।
गहरे उतरे बिना कहीं,
मिलता कभी खज़ाना क्या।
© इन्दु
तूफ़ाँ से घबराना क्या।
पीछे क़दम हटाना क्या।
क्यों डरता है इतना तू,
जीना क्या मर जाना क्या।
ग़लत, ग़लत है, कोई करे,
कहने में शर्माना क्या।
रोते-रोते आया था,
रोकर ही मर जाना क्या।
साथ नहीं कुछ जाएगा,
क्या खोना है, पाना क्या।
दर्द बाँट ले जिसका हो,
क्या अपना,बेगाना क्या।
मर मिटना ही क़िस्मत है,
आशिक़ क्या,परवाना क्या।
सीधी-सीधी बात करो,
नाहक़ ही उलझाना क्या।
गहरे उतरे बिना कहीं,
मिलता कभी खज़ाना क्या।
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