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सांझ
#सांझ
सांझ को फ़िर निमंत्रण मिला है,
दोपहर कल के लिए निकला है;
अब उठो तुम है इंतजार किसका,
कौन है सपना देख रहे हो तुम जिसका;
सब निकल पड़े हैं काम पर अपने,
हो जाओ तैयार और छोड़ो बिस्तर अपना;
क्यों इतना आलस्य फैला रखा है,
जाओ जाकर पहले मुंह धो लो तुम अपना;
सूरज भी सर पर आकर हो गया खडा़,
लगता मेरी बातों का तुम पर कोई असर नहीं पड़ा;
समय पे किया करो तुम काम अपना,
ये समय किसी के लिए आज तक नहीं है रुका;
सीख लो तुम वक्त की कदर करना,
वरना देखना एक दिन तुम्हें पड़ेगा पछताना;
सांझ को फ़िर निमंत्रण मिला है,
दोपहर कल के लिए निकला है;
अब उठो तुम है इंतजार किसका,
कौन है सपना देख रहे हो तुम जिसका;
सब निकल पड़े हैं काम पर अपने,
हो जाओ तैयार और छोड़ो बिस्तर अपना;
क्यों इतना आलस्य फैला रखा है,
जाओ जाकर पहले मुंह धो लो तुम अपना;
सूरज भी सर पर आकर हो गया खडा़,
लगता मेरी बातों का तुम पर कोई असर नहीं पड़ा;
समय पे किया करो तुम काम अपना,
ये समय किसी के लिए आज तक नहीं है रुका;
सीख लो तुम वक्त की कदर करना,
वरना देखना एक दिन तुम्हें पड़ेगा पछताना;
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