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तन्हाई
तन्हाई में जब कभी तेरी याद आती है।
आंखों में आसूं अनायास ही उतर आती।।
बहुत कोशिश किया है मैंने तुम्हें भुल जाने कि,
नाकाम मोहब्बत से अब तो उबर जाने कि।।
हालात मेरे बस में नहीं ना ही दिल ही रहा मेरा।
हद से गुजर जाऊं जिस पे वो एक चेहरा तुम्हारा।।
अब तो बता दें साथिया" भला मुझ से खता हुई क्या...?
मैंने तो तुम्हें अपना धर्म ईमान सबकुछ माना था.....!!
फिर मुझ से ऐसी दगा तुमने कैसे किया...??
किरण
आंखों में आसूं अनायास ही उतर आती।।
बहुत कोशिश किया है मैंने तुम्हें भुल जाने कि,
नाकाम मोहब्बत से अब तो उबर जाने कि।।
हालात मेरे बस में नहीं ना ही दिल ही रहा मेरा।
हद से गुजर जाऊं जिस पे वो एक चेहरा तुम्हारा।।
अब तो बता दें साथिया" भला मुझ से खता हुई क्या...?
मैंने तो तुम्हें अपना धर्म ईमान सबकुछ माना था.....!!
फिर मुझ से ऐसी दगा तुमने कैसे किया...??
किरण
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