...

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तन्हाई
सब साथ है फिर भी तन्हा पड़ जाती हूं,
मैं भीड़ के शोर में कही दब सी जाती हूं,
बहुत मर्तबा खुद को दुनिया के रंग में ढाल कर देखा है,
हर बार उस रंग में बेरंग नज़र आती हूं,
कुछ लोगों को अपना कहा था तो कुछ साथ चले थे,
इन अपनों में भी कही अकेली रह जाती हूं,
कुछ कहना था मुझे भी,
कुछ एहसास जो कही अनकहे से है,
शायद कुछ चंद लोगों को खोने के ख़याल से दो कदम पीछे हो जाती हूं,
यूँ तो कभी खुद को कमजोर पड़ने ना दिया,
लेकिन अपनी किस्मत के आगे हर बार टूट जाती हूं,
मालूम है सब एक दिन ठीक हो जाएगा,
तभी तो जल्दी से सुकून की नींद सोना चाहती हूं....

© Diary_of_feelings