...

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ये कैसी बेताबी ?
ये कैसी बेचैनी ?
ये कैसी बेताबी ?
इस कदर तुम्हारी यादों में खोये हे हम,
ना होशो आवाज़ हमको !

इस दिल में यैसे समाये हो,
जैसे जिस्म में ज़ेहर,
जिससे हम खुद बेखबर !
मेरे ज़िन्दगी के यैसे विष हो तुम,
जिसे निगलने की ना हिम्मत,
ना थूकनेकी चाहत !

ज़िन्दगी में दुबारा आये कियु ?
सपने फिरसे सजाये कियु ?
जिससे ये दिल तुम्हारी यादों में क़ोई रहे!
ना देखना ना छुआ तुमे,
फिरभी ना जाने कियु
तुम्हारी साँसे मुजमे लिपटी जारही हैं !
कुच यैसे समाये हो तुम मुजमे !
तुम इतने करीब हो मेरे,
जितना मुझसे दूर !
ये कैसी बेचैनी ?
ये कैसी बेताबी ?