...

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संसार
हरे भरे खेत में
सुखा सा छाया है,
कमी है एक बारिश की
घना अंधेरा छाया है,

होगी बारिश बुझेगी ज़मीन की प्यास भी,
किया था तिरस्कार जिसने
बिजेगा वो बीज भी,

होगा उजाला निकलेगा सूरज भी,
ताप के सामने जिसके
ना टिकेगा अंधियारा भी,

छोड़ दो अभिमान,
अहंकार को भी त्याग दो,
टूट गया जो रावण का
तुम तो फिर भी मनुष्य हो,

मीठी वाणी बोल कर
त्याग दो इस लोभ को,
हाशिए पर खड़े हुए है हम
हमने खुद ही हाशिए बनाए थे

© sharma