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इतिहासिक रामायण
यह कथा नही प्रभु,तुम्हारे 14 साल के वनवास की.....
ना ही सीता हरण, ना दशानन के विनाश की...

बड़े भाई के प्रेम खातिर जो सही, गलत को भूल गए।
चलो बात करें ऐसे भाईयों के बलिदान की...।।

यह जग जाने श्री राम ने वन रुख मोड़ा था।
भाई प्रेम खातिर,लक्ष्मण ने पत्नी आंचल छोड़ा था।।

जब भाई हो लक्ष्मण तो जीवन पुष्प जैसा खिलता है।
मगर कुंभकर्ण सा भाई किस्मत वालो को ही मिलता है।।

रावण के भाई कुंभकर्ण को भली भाती ज्ञात था।
माता सीता मां लक्ष्मी, और श्री राम विष्णु का अवतार था।।

भाई गलत है फिर भी रावण का पूरा साथ दिया।
भाई के आदेश में ईश्वर से भी युद्ध किया।।

विष्णु भक्त कुंभकर्ण और लक्ष्मण भी सौतेला ही था।
पर भाई के आदेश में हर बाण को इन्होंने झेला था।।

यह बात नही है सही गलत न धर्म अधर्म की बात है।
अपनो का मान सिखाए रामायण वो एक इतिहास है।।

त्रेता युग में धर्म के खातिर विभीषण ने छल किया।
पर कलयुग में अपमान तुमने रिश्तों का हर पल किया।।

दिल दुखता है मेरा जब अखबारों में हम पढ़ते है।
चंद रुपयों के खातिर सगे भाई आपस में लड़ते है।।

श्री राम सा भाई मिल जायेगा,पहले लक्ष्मण जैसा खुद बनो।
दशरथ सा धनवान नहीं पिता, फिर भी उनकी इज्जत करो।।

रिश्तों की जड़ को पानी दो, परिवार सीज जायेगा।
मेरे राम की अयोध्या सा तेरा जीवन जगमगाएगा(2)।।