...

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वक़्त का मारा परिंदा 💫⚡🤟
मन में एक ज्वार उफान पर है..
सबकुछ मेरी आत्मा से परे है..
दिमाग में एक अजीब सी शिकन है..
दिल की घबराहट उससे भी बेनकाब है..
ख़ामोशी की मद होशी में..
अजीबोगरीब शिकन में..
कहीं गुमशुदा होकर मैं..
खुद खो गई कहीं मैं..
तलाश रही हूँ खुद को खुद में..
उलझती जा रही हूँ उलझनों में..
सुलगती जिंदगी में..
कुछ तो आग लगा बैठी मैं..
कुछ दुनिया की नजरां में तमाशा बना बैठी मैं..
बची हुई खाक में ख़ुद को कब्र में दफ़न कर बैठी मैं..
मेरा ह्रदय भंवर जाल हो रहा है..
मंजर यूँ डांवा डोल हो रहा है..
कामयाब इन्सां का डर सता रहा है..
नाकाम याबी की दस्तक से अंतर्मन घबरा रहा है..
ये मंजर जैसा भी चल रहा है..
बखुदा बदनसीबा लिए चल रहा है..

सबकुछ हाथ से छूट रहा है..
दिल दिमाग सबसे बाहर बैठा है..
खुद, खुद में ही उलझा बैठा है..
नादां परिंदा वक्त थामा बैठा है..
सबकुछ एक लम्हे के लिए फ़िसल जाता है..
कम्बख्त हम से ठहरा न जाता है..
न थामा जाता है..

जैसा चलता है मंजर..
वैसे ढलता जाता है मुसाफ़िर.. by क्षमा सैनी 👑😎