...

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इन्साफ-का-बलात्कार या बलात्कार-का-इन्साफ?
आज एक माँ का कलेजा चीख चीखकर गुहार लगा रहा है,
क्या आज फिर किसी निर्भया का बलात्कार हुआ है?
कैसे आज पिता की ताक़त अबला बनकर रह गयी है,
आज फिर उस बेटी का स्वाभिमान हमें पुकार रहा है।

क्या गलती करी थी मैंने जो मेरा ये हाल हुआ है,
क्यों मेरे कपड़ो संग मेरी इज़्ज़त को नोचा गया है!
ज़िंदा रहते खुद पर ही घिन आ रही है मुझे,
मेरी ज़िन्दगी को क्योकि इस दरिंदगी में दबोचा गया है।

दशानन हमेशा जलता जिसने छुआ न सीता माँ को कभी,
लेकिन उस दुशासन का क्या जिसने किआ चीरहरण था कभी,
क्यों आज हम पर आँख उठाने वाले खुले आम यूँ रहते हैं,
क्या राम राज्य में राम सिंह जैसे बलात्कारी ही रहते हैं ?
क्यों इस आबादी ने उस दिन सौम्य की चीख रत्ती भर न सुनी?
क्यों आखिर प्रियंका दामिनी हैवानो की हवस में जली मिली?
क्यों निर्भया सालों तक इन्साफ की घड़ियां गिनती रही?
क्यों हर पल हर क्षण मैं घुट घुट कर जीती रही?


इसलिए कहता हूँ बहनों, ......
ये बात समझो और लड़कर वापिस लो अपना हक़,
दुर्गा रूप धरो बैठोगी द्रौपदी बनकर तुम कब तक?
अब न माधव आएंगे भरी सभा में सूत बढ़ाने,
न कोई हरि आएँगे कुकर्मी पर चक्र चलाने।
इन दुष्कर्मियों को ऐसे भद्र बन तुम भेद दो,
बलात्करिओं की रूहों को तुम जैसे कुर्रेद दो।



© Utkarsh Ahuja