...

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फर्क़
फर्क़..
फर्क़ तुझमें और मुझमें
है बस इतना ही
तू बेयकीन सा था
यकीं हमें हद से ज़्यादा था
इस बात से सुकून था
तू दूर ना जा सकेगा कभी
ना ही ये मान सकेगा कभी
इन्तज़ार है तेरा बेकरारी नहीं
ना चल सका साथ कोई दुश्वारी नहीं
कभी जो लम्हें इकट्ठा करना
बीती बातों के....
बेहिसाब रौशनी बिखरी होगी
हमारी वफाओं की
मुख्तसर कहानी में है यही
तू दूर जाता रहा
पास हम आते गये
NOOR E ISHAL
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