...

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प्रकृति के बांहों में
ये चंचल मन न फुदक तू,
अब चल कंही खो जा।
भटक लिया तू इधर– उधर ,
चल आराम से सोजा ।
तेरी नजर हर कोने तक फैली है।
पर तू अब अपनी चाहतों को समेट,
और कुछ उम्मीदों को सजोजा।
ये चंचल मन न फुदक तू,
अब चल कंही खो जा।
तू बहती हंवाओं को पकड़ ,
अपने पास बिठा ले।
चलती राहों में चांद सूरज को,
अपना साथी बना ले।
तू महकती फूलों की खुशबू में,
खुद को बहका ले ।
और पर्वत झरने नदियों को ,
अपनी दुनिया बना ले।
न बहक तू सांसारिक सुख सुविधाओं में,
ये चंचल मन न फुदक तू अब,
चल खो जा प्रकृति के बांहों में।


© Savitri..