प्रकृति के बांहों में
ये चंचल मन न फुदक तू,
अब चल कंही खो जा।
भटक लिया तू इधर– उधर ,
चल आराम से सोजा ।
तेरी नजर हर कोने तक फैली है।
पर तू अब अपनी चाहतों को समेट,
और कुछ उम्मीदों को सजोजा।
ये चंचल मन न फुदक तू,
अब चल...
अब चल कंही खो जा।
भटक लिया तू इधर– उधर ,
चल आराम से सोजा ।
तेरी नजर हर कोने तक फैली है।
पर तू अब अपनी चाहतों को समेट,
और कुछ उम्मीदों को सजोजा।
ये चंचल मन न फुदक तू,
अब चल...