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के बस एक चाहत...
के बस एक चाहत,
मैं बारिश की लेकर
ताउम्र बंजर सा होके जिया।
जिसे सब ने छोड़ा,
सभी ने भुलाया
के उस एक मंज़र सा होके जिया।
के बस एक चाहत...
था रौशन भी और, जगमगाता भी था जो
मोहब्बत के नग्मे सुनाता भी था जो,
था जिसकी दीवारों में बस इश्क़ रहता
वो घर आज खण्डहर सा होके जिया।
के बस एक चाहत...
© AK. Sharma
मैं बारिश की लेकर
ताउम्र बंजर सा होके जिया।
जिसे सब ने छोड़ा,
सभी ने भुलाया
के उस एक मंज़र सा होके जिया।
के बस एक चाहत...
था रौशन भी और, जगमगाता भी था जो
मोहब्बत के नग्मे सुनाता भी था जो,
था जिसकी दीवारों में बस इश्क़ रहता
वो घर आज खण्डहर सा होके जिया।
के बस एक चाहत...
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