...

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दूसरा बचपन
बढ़ चला है
जीवन मेरा...
सूर्योदय से सूर्यास्त की ओर
पुन: कभी न उदित होने के लिए
परंतु दु:ख नहीं मुझे कदापि

बहुत कुछ सीखा मैंने
और बहुत कुछ भुला दिया
क्योंकि
मुस्कान को मुख पर सजाए
कठिनाइयों को
भूलने की आदत है मेरी

बुढ़ापे को कहने वाले
यूँ ही नहीं...
दूसरा बचपन कहते

© Shweta Gupta

#ssg_realization_of_life