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प्रेम
शबे-विसाल के बाद आईना तो देख ज़रा,
खिल गई कली बिखर,ख़ुद को संभालना,
ये ज़ुल्फ ये अंगड़ाई, ये जिस्म की गहराई,
रूह पर पड़ गई परछाई, ग़ौर से मचलना,
बेहद थी ख़ुबसूरत रात, दिन होगा गुलज़ार,
अब रूप को सँवार तू मेरे प्रेम में उतरना।
© khwab
खिल गई कली बिखर,ख़ुद को संभालना,
ये ज़ुल्फ ये अंगड़ाई, ये जिस्म की गहराई,
रूह पर पड़ गई परछाई, ग़ौर से मचलना,
बेहद थी ख़ुबसूरत रात, दिन होगा गुलज़ार,
अब रूप को सँवार तू मेरे प्रेम में उतरना।
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