...

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नौसखियाँ
मैं देखता तुम्हें
जो सर्दी गर्मी बरसात
अपना पसीना बहाती है
चाय से खाने तक
वो भी लज़ीज जायके के साथ
मौसम बदलते है
लेकिन स्वाद रोज दिल तक जाता है
मुझे लगता है
रोजमर्रा की ज़िन्दगी में
बिन कहे एक दूसरे की मदद
प्रेम को नैसर्गिक करता है
गुस्सा आकस्मिक होता है
इस क्षण आया और गया
बस ठहर जाता है प्रेम
कुछ मेहँदी के रंग सा
शायद मैं नौसखियाँ हूँ
प्रेम से अनभिज्ञ
या मुझे प्रेम प्रदर्शन नहीं आता
जैसे इत्र से साराबोर गुलाब
जो टूटने के बाद अस्तित्व खो देते है
© "the dust"