...

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मैं निहारूं।
मैं सोये सोये आसमा निहारूं,
कभी बदल कभी तारे निहारूं,
आसमान में तारे सजे अचल कि मोती की तरह
और बादल सजे रुईयाँ की छाप की तरह।
मैं बेठे बेठे बहती नदी निहारूं,
कभी नीला तो कभी लाल निहारूं,
जैसे उड़ेल दी हो किसी बच्चे ने रंग थाल कि।
मैं निहारूं उन उड़ती पतंगों को,
जो उम्मीदों की डोर जोड़े उड़ चले आसमा के ख्यालो में।
ये लो छोड़ चले पंछी जमीं को
आसमान से निहारने को।
मैं निहारूं सब जब तक नज़रे न थके।