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फ़िर एक ढ़लती शाम
ढल रहा सूरज दिन की थकन से,
लौट रहे सब पंछी भी घर अपनें,
बदलने लगा रुख़ भी हवाओं का,
कमज़ोर होने लगा हौशला सारा,
बिखरने लगें सब सपनें रेत से,
बदलनें लगा लहज़ा ये लोगों का,
करवट लेने लगी है ख़्वाइशें सब,
कल फिर निकलेगा सूरज नया,
फिर शुरू होगी दौड़ जीवन की,
© feelmyrhymes {@S}
लौट रहे सब पंछी भी घर अपनें,
बदलने लगा रुख़ भी हवाओं का,
कमज़ोर होने लगा हौशला सारा,
बिखरने लगें सब सपनें रेत से,
बदलनें लगा लहज़ा ये लोगों का,
करवट लेने लगी है ख़्वाइशें सब,
कल फिर निकलेगा सूरज नया,
फिर शुरू होगी दौड़ जीवन की,
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