कहते, ,
कब कहते है दरख़्त किसी से रुकने की
पत्ते तो खुद ही गिर जाया करते
हरे भरे हो या हो फिर सूखे से
गिरने पर तो सब मुरझाया करते
सुखनवर्ग है तभी तो मुतमइन है
दरख़्त है उनके भी नाम रहते
हम कहते तो क्या फिर क्या अच्छा रह जाता
शायर के तो लब्ज़ ही शायर कहते है,,
© Satyam Dubey
पत्ते तो खुद ही गिर जाया करते
हरे भरे हो या हो फिर सूखे से
गिरने पर तो सब मुरझाया करते
सुखनवर्ग है तभी तो मुतमइन है
दरख़्त है उनके भी नाम रहते
हम कहते तो क्या फिर क्या अच्छा रह जाता
शायर के तो लब्ज़ ही शायर कहते है,,
© Satyam Dubey