दस्तूर
जिधर जिंदगी दिखी
बस वहीं चल पड़ा
कभी गिना ही नहीं
किसने क्या कब दिया
एक सिलसिला सा है
शिकायतों का ये ढेर
मुझे क्या शिकवा...
बस वहीं चल पड़ा
कभी गिना ही नहीं
किसने क्या कब दिया
एक सिलसिला सा है
शिकायतों का ये ढेर
मुझे क्या शिकवा...