...

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Aaj
हैं खाली हर खिड़की आज ,
सिर्फ आवाज़ हैं परिंदों की बाहर

कैद कर दिया हैं कुदरत ने इंसान को ,
सुना हैं ताजी हवा हैं आज बाहर

अपनी ही ख़ामोशी अब सुन नहीं पाता मैं,
कहते हैं आज शोर बहोत कम हैं बाहर

वक़्त भी थम गया हैं चार दीवारी में आज,
बेकदरा हैं वैसे तो बहोत , वक़्त नहीं वक़्त पास किसी के वास्ते बाहर

बिस्तर पर पड़े छत से बात होने लगी हैं अब तो,
अपनी ही धुंध में तर था मैं कभी देखा नहीं आसमान बाहर

शांति थी अब सन्नाटा हो रहा हैं ,अब आज़ादी चाहता हूँ ,
गडा गडाहट सुनाई दे रही, शायद बरसात हो रही हैं बाहर

खुद की धड़कन सुनने लगा हूँ अब , शायद कुदरत ये ही सिखाना चाहती हैं,
मशरूफियत इस कदर हैं ,किसी की चीखें भी सुनाई देती किसीको बाहर