...

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work from home
ऑफिस में अब शायद धुल होगी....

कॉफ़ी मशीन भी नींद में चूर होगी....

माना अब हर घंटे सुट्टे की तलब अधूरी होगी....

क्यूबिकल्स से झाँकती निगाहें ना होगी....

खुर्ची मेरी मेज़ से चिपकी ना होगी....

अब बिना चुगलियों के दिन काटना होगा,
जुबान पे कोई गाली ना होगी....

मानता हूँ थोड़ा दर्द तो होगा,
की अब कुछ खास मुलाकातें ना होगी....

हाँ बावजूद इसके मैं खुश हूँ ,
वर्क फ्रॉम होम मिला हैं भईया अब तो बिन बादल बरसात होगी.....

बड़ा मस्त था मैं की अब बॉस की सड़ी शक्ल ना होगी...

मजबूरी तले मेरी मरती ईगो ना होगी....

यूँ तो बस दो दिन हुए हैं पर काले बादल छाने लगे हैं,
कोई तो होगा काली शक्ल वाला जिसकी पक्का नज़र लगी होगी....


इस बंदिस्त में भी प्रोजेक्ट की तलवार मेरे सिर पर हैं, अब जान गया हूँ की,
मैं नौकर हूँ साहब ,
हर वक़्त बली तो मुझे ही देनी होगी.....

अब तो हर पल एक समान हैं....
आईने के उस ओरे एक थका इंसान हैं...
ये dead लाइन dead होके भी मरती क्यों नहीं ? बस ज़ेहन में ये ही सवाल हैं.....

-sandeep kadam

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