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पिंजरे का तोता.....
में पिंजरे का हूं इक तोता
बाहर न जानें क्या क्या होता
लोह सलाखों पर मेरा घर
बैठ अकेला हसता रोता...!!!
घूम के दुनियां पंछी आते
पंख फैलाए हंसते गाते
चाहु करना में भी सैर सपाटा
मूझे कैद कर क्यों तरसाते
जीवन मेरा किया अंधेरा
क्यों पिंजरे मे दिया बसेरा
मां बाप से बिछड़ा हूं में
मिलने को जी तरसे मेरा...!!!
बोलूं में तो सब भाषाएं
जो भी मुझे सिखाए जाए
इसी हुनर की सज़ा मुझे दे
मानव अपना जी बहलाए...!!!
मेरी कहानी में बहुत दर्द हैं
किस से कहूं किसको सुनाऊं....!!!
इंसान तो मतलबी हैं
© 𝔩𝔬𝔱𝔲𝔰19.🪷
बाहर न जानें क्या क्या होता
लोह सलाखों पर मेरा घर
बैठ अकेला हसता रोता...!!!
घूम के दुनियां पंछी आते
पंख फैलाए हंसते गाते
चाहु करना में भी सैर सपाटा
मूझे कैद कर क्यों तरसाते
जीवन मेरा किया अंधेरा
क्यों पिंजरे मे दिया बसेरा
मां बाप से बिछड़ा हूं में
मिलने को जी तरसे मेरा...!!!
बोलूं में तो सब भाषाएं
जो भी मुझे सिखाए जाए
इसी हुनर की सज़ा मुझे दे
मानव अपना जी बहलाए...!!!
मेरी कहानी में बहुत दर्द हैं
किस से कहूं किसको सुनाऊं....!!!
इंसान तो मतलबी हैं
© 𝔩𝔬𝔱𝔲𝔰19.🪷
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