...

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मुक्त हुई स्त्री
एक दिन सामने
प्रेम खड़ा था
बाहें फैला
स्वागत को आतुर...

मुक्त हुई स्त्री
ठहरी ठिठकी डरी
भय
उसके रोम रोम में समाया
लगा
उसकी मुक्ति खतरे में है
प्रेम उसे जकड़ लेगा
तबाह कर देगा
आखिर
प्रेम की हथेली मे
प्रताड़ना जो देखी थी उसने....

स्त्री वहां से भागी
भागती हुई
बहुत दूर निकल गई...

आखिर
इससे पहले भी तो
कभी उसने
प्रेम की गिरफ्त में
एक उम्र गुजारी थी।