मुसाफ़िर
कभी थक कर थम जाते हैं कदम,
आँखों में यादो की बूंदे भर जाती हैं,
उम्र अभी सांझ ढलने की नहीं है,
पर देख पथिकों के दुख थम जाते हैं हम।
यहाँ बन मुसाफिर आते हैं...
आँखों में यादो की बूंदे भर जाती हैं,
उम्र अभी सांझ ढलने की नहीं है,
पर देख पथिकों के दुख थम जाते हैं हम।
यहाँ बन मुसाफिर आते हैं...