...

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क्यों अकेला हूँ मैं
पैदा हुआ भूमि पर,
आया अकेला दुनिया में
साथ रहे सब साथीजन
फिर हूँ अकेला मैं...

साया था माँ बाप का सर पर,
साथ निभाया नातों ने,
सुख के दिन में साथी सब थे
दुख में हूँ अकेला मैं...

पत्नी बच्चे धन दौलत थी,
मिला नाम एक दुनिया में।
साथ सगे थे अपने पराये
फिर भी था अकेला मैं...

बड़ा हुआ रहते थे संगी,
साथ लिया सब दुनिया ने,
समय जब अपने साथ का,
रह गया अकेला मैं...

बचपन बीता यौवन आया,
ढला शरीर इस दुनिया में।
मरण समय श्मशान तक आये
गया अंत में अकेला मैं...

जब जाने की बारी है आती,
छोड़ सभी इस माया में।
चले जाते है हाथ खोल कर
जाऊँगा अकेला मैं।

कथा जान इस जीवन की तू,
समझ असल इस दुनिया में।
दुख में ही पता लगता है,
क्यों रहता हूँ अकेला मैं।।

© Rahul