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लबों पे इक अनसुनी दास्तां..........✍🏻
लबों पे इक अनसुनी दास्तां रूकी हुई है
प्रीत के रिश्तों में क्यों इतनी कमी हुई है
मैं अधूरे ज़ज्बात की बातें क्या ही लिखूं
अनसुनी दास्तां में ये कैसी बे-तुकी हुई है

यूं ही नहीं वफ़ा की दास्तां शब्दों में थी
तमाम सवालों में इक पहली उठी हुई है
मुलाक़ातों की अनसुनी बातें मिटने लगी
तेरी मेरी प्रीत की डोरी क्यों जली हुई है

अनसुनी दास्तां के इम्तिहान क्या खुब है
किताब में उलझी सुलझी ये ज़िंदगी हुई है
वक़्त के साथ इक किस्सा बे-वक़्त बयां है
क्यों इस अनसुनी दास्तां से दुश्मनी हुई है

क्या कहूं , क्या ना कहूं आज कल जमाने से
इक तरफा रिश्ते से कुछ यूं ख़ुद-कुशी हुई है
ख़ामोशी प्रश्न है अश्कों से भीगी हुई पलकें
अनसुनी दास्तां की निशानी अजनबी हुई है

किताबी अल्फ़ाजों की कहानी समेटे रखें है
लबों पे इक अनसुनी दास्तां यूं रूकी हुई है
अधूरे एहसासों के तमाम ज़ख़्मों ऐसे बयां है
अनसुनी दास्तां के ये कैसी दिल-कशी हुई है

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes