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हमारी मुहब्बत
हमारी मुहब्बत

लाख रंजिशें चाहे बसा लो दिल में तुम अपने,
मुहब्बत कभी हमारी फिर भी उससे कम न होगी ।


ज़माना इस मुहब्बत को, इकतरफ़ा गर कह भी ले लेकिन,
अपनी जान से बढ़कर, रग रग में बसाया लिया है मैंने इसे ।

मुहब्बत कोई ज़र से करता है, कोई ज़मीन से करता है,
मुहब्बत हमारी वो है, जो हर एक बशर में बस्ती है ।

खुदा मुहब्बत है और बेइंतेहां वो तुझसे करता है "रवि",
बसा ले दिल में तू अपने, उम्मीद वो तुझसे भी करता है ।

यही एक राह सच्ची है, गर चल पड़े हर इंसान उसकी,
नफरतों का दौर है दोस्तों, ख़त्म कर दो रंजिशें दिलो की ।

राकेश जैकब "रवि"