...

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Kya hu mai...🌿
ख़ुद से कहूं या तुझ से कहूं,
तेरे सिकवे में कितना सहूं
वक्त से बेवक्त तक कितना मैं लडू
इससे भला तो यही है
कि कुछ भी न मैं कहूं
देर रात तक अक्सर मैं
बस यही सोचा करू
कब तक यूं अंधेरी फिजाओं में बहु
किस्मत की समझू की है ये तेरा गुरुर
बहकती फिज़ा में बहु
की मूर्त मैं सजू ,भोर से चांदनी तलक
बता मैं कब तक सहू ,
खुद से झुकू या दुनिया में झुकूं
दुनिया मे बनू कि दुनिया में सजूं
आसमां से उठ कर
बता ज़मी में भी न गिरु
अब मै तुझ्से
यह आख़िरी सवाल है करू
क्या कल वो थी जो आज मैं हूं!!

#writcopoem
#my identity??
#trust on people not on their
insights...
#when u feel it fix to it but
not to change it...
#not all are same...
#it really hurts when you have to prove yourself...
#🌿💚