...

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ना जाने..
ना जाने क्यों एक दिन सरगोशी में लिपटी खुद के साथ कुछ बात हुई,
ना जाने कब एक अर्से से चुप बैठी मेरी खामोशी से फिर एक मुलाक़ात हुई।

ना जाने क्यों नजरे मिली जब खुद से तो खत्म पूरी एक रात हुई,
ना जाने फिर कब तक आंखों से बस रिमझिम बरसात हुई।

ना जाने क्यों उस आंखमिचोली के खेल में मेरी जीत के साथ मेरी ही मात हुई,
ना जाने कब एक और नए खेल की इस जिंदगी में फिर एक शुरुआत हुई।

© dil_e_akanksha