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गर होता हुनर अगर...
गर होता हुनर ज़िंदगी लिखने का,
तो एक तेरा मैं नाम लिख देता।
दरिया में डुबो देता मैं सूरज को,
हर सुबह को तेरे लिए मैं शाम लिख देता।
तेरी खुशियों की ख़ातिर जिस्म तो क्या,
मेरी रूह भी मैं तेरे नाम कर देता।
तुझे नज़र ना लगे इस दुनिया की इसलिए राज़ रखा है,
वरना तेरे दीदार-ऐ-इश्क़ में मैं ये सारा जहां लिख देता।।
© आशीष सिंह
तो एक तेरा मैं नाम लिख देता।
दरिया में डुबो देता मैं सूरज को,
हर सुबह को तेरे लिए मैं शाम लिख देता।
तेरी खुशियों की ख़ातिर जिस्म तो क्या,
मेरी रूह भी मैं तेरे नाम कर देता।
तुझे नज़र ना लगे इस दुनिया की इसलिए राज़ रखा है,
वरना तेरे दीदार-ऐ-इश्क़ में मैं ये सारा जहां लिख देता।।
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