बंद लिफ़ाफ़ा
मैं हूँ एक बंद लिफ़ाफ़ा, ये मेरी कहानी है,
इसमें एक ख़त है,
जो लेखक की क़लम-ए-ज़ुबानी है।
मुझे स्याही से नीला रंगने में लेखक बहुत घबराया होगा,
कैसे होगा जीवन-यापन,
ये सोच कर उसका हाथ थर्राया होगा।
फिर भी वो लिखता गया आखिरी ख़त-ए-खुशामद,
कि "साहिब, आपकी संस्था से मिली है मुझे
आदर-सम्मान की दौलत,"
ये झूठ लिखते हुए उसका ज़मीर ठोकर खाकर झुंझलाया होगा,
मुझे स्याही से नीला रंगने में लेखक बहुत घबराया होगा।
मन में तो लेखक के सैलाब थे बेशुमार बेइज़्ज़ती के,
मन को मार के रह जाने वाली,
ख़ून का घूँट पीकर जीने वाली ज़िंदगी के।
लेखक शायद शिक्षा से जुड़ा है,
तभी एक हाथ में बंद लिफ़ाफ़ा लिए,
दूसरे हाथ में...
इसमें एक ख़त है,
जो लेखक की क़लम-ए-ज़ुबानी है।
मुझे स्याही से नीला रंगने में लेखक बहुत घबराया होगा,
कैसे होगा जीवन-यापन,
ये सोच कर उसका हाथ थर्राया होगा।
फिर भी वो लिखता गया आखिरी ख़त-ए-खुशामद,
कि "साहिब, आपकी संस्था से मिली है मुझे
आदर-सम्मान की दौलत,"
ये झूठ लिखते हुए उसका ज़मीर ठोकर खाकर झुंझलाया होगा,
मुझे स्याही से नीला रंगने में लेखक बहुत घबराया होगा।
मन में तो लेखक के सैलाब थे बेशुमार बेइज़्ज़ती के,
मन को मार के रह जाने वाली,
ख़ून का घूँट पीकर जीने वाली ज़िंदगी के।
लेखक शायद शिक्षा से जुड़ा है,
तभी एक हाथ में बंद लिफ़ाफ़ा लिए,
दूसरे हाथ में...