...

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प्रेम गली
जिस गली में रहती हूँ मैं ,वो किसी स्वर्ग से कम नहीं,
अब ये स्वर्ग क्या होता है
इसके सही मायने आज के दौर में
जानते हम नहीं।

क्यों न कह दूं अपनी गली को स्वर्ग मैं,
रहते यहाँ भी इंसान ही हैं,
पूरे शहर से जुदा बनाती है जो इसे,
वो एक साथ आती आवाज़-ए-गुरुबानी, आरती, अज़ान ही हैं।

जलते हुए शहरों, नफ़रतों के इस दौर में,
मेरी गली...