...

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"एक सवाल"
गुजरती हूं जब भी उधर से यही ख्याल आता है,
क्या कसूर है इनका बस यही सवाल सताता है।
जलने लगते है पांव हमारे जेठ की दोपहरी में ,
छाले नहीं पड़ते इनके क्या बिन चप्पल
दौड़ते गली में ।
दुबके रहते हैं कंबल, जैकेट में फिर भी सवाल उठाते हैं,
कैसे रहते है फुटपाथ पर नंगे - भूखे ही रात बिताते हैं।
गरीब के बच्चे भूखे रहकर लाचारी में जीवन बिताते हैं,
अमीरों के कहने ही क्या कचरे में खाना फिकवाते हैं।
अजब हाल है देश का अपने ग्रेजुएट बेरोजगार कहलाते हैं,
क ख ग घ पता ना जिनको जनता को नाच नचाते हैं।
sapana ✍️
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