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अंतर्मन की व्यथा ✍️✍️✍️
अंतर्मन की व्यथा ✍️✍️✍️

मन इतर उतर होता रहता तुमसे लगकर आराम मिले !
सब द्वार गली हम ढूंढ लिए ये मन चाहे अब श्याम मिले !
अब श्याम मिले तो बरसा दूँ मन खोल व्यथा का नीर सभी !
हों पुण्य उदित न जाने कब दे दर्शन मुझको श्याम तभी !
मथुरा काशी सब घूम रहा पैरों में हैं पड़े अंगित छाले !
मन डूब रहा सुन मन की व्यथा अब तू सुन ले मुरली वाले !
नित धीर धरे धीरज रखूँ धीरज धर भी धीरज न मिलें !
आपन हाथ जो शीश धरो तब पंकज मन मंदिर में खिलें !
मन तरसे गोकुल गोपिन सम जिन अंखियाँ दर्शन को तरसे !
मेरे ह्रदय का गोवर्धन लो उठा अश्रू मन से अविरल बरसे !
नित राह टटोलूं अँखियों से जस शबरी अनवे रघुबर को !
तुम पाए बिन जी अस सुलगै जस आग जलावै घर भर को !
मन आस भरे चातक मन सा एक बूँद से जीवन पार करे !
तर जाऊं वृथा भवसागर से कान्हा चितवन एक बार करें !
करबद्ध करुं बिनती प्रभु मेरे इतना मुझपर उपकार करो !
मुझको प्रह्लाद समझकर प्रभु इस जीवन का उद्धार करो !

BY_ VIKSMARTY_VIKAS✍️✍️✍️
© VIKSMARTY _VIKAS✍🏻✍🏻✍🏻