ग़ज़ल
इक तरफ़ हम परिंद उड़ा रहे हैं
इक तरफ़ वो क़फ़स बना रहे हैं
लोग अब इतना डर गए हैं के
पानी को भी चबा के खा रहे हैं
शोर तन्हाई करती है कितनी
भीड़ में खुद को तन्हा पा रहे हैं
चिट्ठियाँ...
इक तरफ़ वो क़फ़स बना रहे हैं
लोग अब इतना डर गए हैं के
पानी को भी चबा के खा रहे हैं
शोर तन्हाई करती है कितनी
भीड़ में खुद को तन्हा पा रहे हैं
चिट्ठियाँ...