...

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मन परिंदा
मन के परिंदे उड़ते रहें
और जिस्म चार दीवारी में कैद रहा..!!!
चाहतें दिल में बसती रही
मन सूनी गलियों में मुस्तेद रहा...!!!!
© दीपक बुंदेला आर्यमौलिक