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शहर पूरा अच्छाई से भरा तो नहीं
शहर पूरा अच्छाई से भरा तो नहीं
यहां भी गुनाह ए दस्तूर होता हैं
दिखावें शौक से हर दिन ज्यादा
दिल में इक दूजे को गिराने का फितूर होता है
बेटा बड़ा हुआ तो अहमियत दिल में बदल गई
फ़िर मां बाप का दिल वृद्ध आश्रम जानें को मजबूर होता हैं
सिर्फ़ गांवों में नहीं होते सितम नारी पर
यहां भी बिना बंदिशों की जिंदगी से घर उनका दूर होता हैं
दौलत वालों का दिल से ग़रीब होना
और ग़रीब का दो वक्त की रोटी का ख्वाब हर दिन चूर होता हैं
लोग कह रहे जातिवाद बस गांवों तक सीमित रह गया
पर शहर में आज भी जातिवाद का मंज़र कुछ इंसानों को मंजूर होता हैं
पड़ोसी का अब दर्द में हमदर्द बनना कहां दिखता
बल्कि लड़ता हुआ मंज़र आंखों के रूबरू ज़रूर होता हैं
आज भी नन्हीं सी गुड़िया का जीवन संकट में रहता
कुछ इंसानों को यहां भी बेटा बेटी के बीच फ़र्क करनें का सुरूर होता हैं
लोग मिल कर रहते नहीं सभी
यहां भी जिंदगियों को गुरूर होता हैं

हों रहीं जंग इंसान की इंसान से
भड़क रहीं आग हर दिल में हैं
ज़रूरत अब लगतीं किसी चमत्कार की
ये जहान फंस रहा मुश्किल में हैं
-उत्सव कुलदीप







© utsav kuldeep