...

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#श्रीराम
सह ली सारी यातना, पर कर्तव्य सर्वोपरि रखा,
त्याग, शील, संकल्प को, जिस तरह जीवित रखा,
बोलो, कहां तक टिक सकोगे? यदि राम सा संघर्ष हो!
कल मुकुट जिस पर साजना था, अब उसे सबकुछ त्यागना था,
निर्णयों के द्वंद्व से एक बालपन का सामना था,
वचन भी था थामना, आदेश भी था मानना,
तब इस तरह सोचो स्वयं को, धर्म में तुम रख सकोगे,
बोलो, कहां तक टिक सकोगे? यदि राम सा संघर्ष हो!

प्रजा तो बस राम की थी, दुनिया उसे तो जप रही थी,
वचन ही था तोड़ देता, धर्म ही था छोड़ देता,
पर पीढ़ियां क्या सीख लेगी, राम को चिंता यही थी,
हो छीन रहा क्षण में सबकुछ, सोचो एक क्षण, क्या करोगे?
बोलो, कहां तक टिक सकोगे? यदि राम सा संघर्ष हो!