...

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बनारस
तुम निर्मल पावन गंगा सी,
मै काशी की कोई गली प्रिये।
मै किसी घाट का पत्थर हूँ,
तुम फूलों की नाज़ुक कली प्रिये।
तुम विश्वनाथ की आस्था सी,
मै मणिकर्णिका की राख प्रिये।
तुम गिरिजा देवी की ठुमरी सी,
मै डमरू दल की नाद प्रिये ।

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