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एक नया साल
एक नया साल

कल ही की बात है जब नया साल आया था,
भरी रौशनी और फूलो से पुरज़ोर इस्तकबाल किया था,
नयी उम्मीद और नयी ख्वाईशो की फेरिस्त बनाई थी,
उम्मीद ही टूट जाएगी किसी को कोई खबर ही नहीं थी !

शुरू में तो कुछ चमकते दिए की लो सी छाई थी,
सितारे तो दूर है मगर रौशनी फिर भी हमपर नाज़िल थी,
कुछ कर गुज़ारने की लोगो ने कसमें भी खाई थी,
सपने इस तरह बिखरेंगे किसी को उम्मीद नहीं थी!

कुछ इस तरह से ग़ज़ब आदम जाद पे बरपेगा,
पास होकर भी बंदा अपनों को बेगाना ही सा समझेगा,
गले मिलना तो दूर नज़दीकिया भी गंवारा न होंगी किसीको,
अपनी ही साँसों को अपने में उतारने को मज़बूर हो जायेगा!

मज़दूर भी रोज़ी रोटी को मोहताज़ हो जायेगा,
बड़े बड़े आसूदाहाल भी रूखी सूखी खाएंगे,
धरी रह जाएँगी सवारी सभी पैसे वालो की,
दूर खड़े होकर बस यूँही अपने हाथो को हिलायेगा !

किसी ने नई ज़िन्दगी की शुरुआत करनी थी,
किसी ने अपना घर बसाने की चाहत भी रखी थी,
किसी के घर पे नन्ही सी कली मुस्कराहट ले के आई है!
किसी ने अपने ही हाथो से अपने शहज़ादे को दफनाया था,

शैतान ने कुछ इस तरह से जकड़ा इस ज़हान को,
मारे डर के सभी ने कैद कर लिया अपने आप को,
ए खुदा अब तो अपनी रेहमत और करम फ़रमा हम सभी पर,
आने वाले साल में सभी के दामन में खुशिया डाल दे भर कर!

राकेश जैकब "रवि"