...

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पत्नी कविता

थे पहले सब अजनबी
उन्हें अपना बनाया
सभी को सपोर्ट करा
जब खाने बनाने मे
हुई त्रुटि
अपनों ने साथ दिया
भले हो किचन का काम
या घर सम्भालने की जिम्मेदारी
हर बार यकीन करा
आगे बढ़ने का मौका दिया
बेटी और बहु को
दिए मिले समान अवसर
हालात कितने भी बदले
टूटने ना दिया कभी
वो कौन होते
जो बहु को
टोक टोक करते
सुबह उठकर
सभी के चाय नाश्ते से
होती शुरुआत
दिन कब ढल जाता
पता नहीं चलता
बहुत सी बहुएं अब
मुँह जोरी भी करने लगी
बहु सभी का सोचती
बाबा की लाड़ली
ससुराल आकर
सब जिम्मेदारी
सम्भाल लेती
किचन मे जाना
पहले पसंद नहीं था
बाद मे सभी
का खाना बना देती
होती खुश इतना
सपोर्ट परिवार ने किया
जब खाना नहीं बन पाता
सही से तो सास सिखाती
याद जब आती घर की
और आंसू रुक नहीं पाते
सास माँ बनकर
माथे पर हाथ फेरती

© ©मैं और मेरे अहसास